उमड़ती तेरे इश्क़ की

उमड़ती तेरे इश्क़ की कोई एक लहर तो हो
मैं रात सारी जाग लूँ कभी इश्क़ की सहर तो हो

तुझसे ही शुरू तुझपर ही जो खत्म हो बस
मुझको जुनून इश्क़ का कभी इस कदर तो हो

माना की राह ए इश्क़ है बड़ी मुश्किल मगर
थाम लो इश्क़ में यूँ की अपनी गुज़र तो हो

काश तुमसे कर सकें इश्क़ थोड़ा तुमसा ही
मेरी इन दुआओं में कभी कोई असर तो हो

मुद्दतों से इश्क़ की बस्ती मेरी वीरान है
एक नज़र तेरी जो हो मेरी कभी बसर तो हो

जाने कितने तूफानों को दिल मे समेटे बैठे हो
ज़लज़ला ए इश्क़ कभी कोई इधर तो हो

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून