पीर बिरह की
हाय लगै पीर बिरह की खारी
हाय प्राण काहे न निकसै हिय न जाय सम्भारी
कौन उपाय होय तुम कहियो पीर न हिय समावे
पुनि पुनि नाम टेर रही बिरहन प्राण सँग रहै धावै
हा हा नाथ न प्रीति मोरी साँची काहे देहि धारी
बिनहुँ प्राणन काहे प्राण धराय अबला करत बीचारी
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