देयो नाम की प्रीत
हरिहौं देयो नाम कौ प्रीति
नाम प्रेम न उपजै जा घट समझै कौन भाँति रस रीति
साँची प्रीति हरिनाम की देय सब रिपुअन दूर नसावो
लोभ मोह मद मत्सर नाथा कल्मष सौं हिय हटावो
तुम्हरो बल होय साँचो नाथा बाँवरी रहै सदा बलहीन
अपनी चौखट राखो नाथा बिनती करै रोय रोय दीन
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