तुमसे बिछड़कर जीना

तुमसे बिछड़कर जीना भी कोई जीना है
बेवजह से साँसों का बोझ उठा रखा है
कितना दर्द कितनी आहें उठती हैं यहाँ
नाम तेरा ले लेकर सीने में दबा रखा है

मुझको तो इल्म नहीं जिंदा होने की वजह क्या है
रूह तलक चीख रही इस दर्द की दवा क्या है
हमने क्यों दर्द को लफ़्ज़ों में छिपा रखा है
तुमसे बिछड़कर .......

पल पल सिसकती रूह को करार हो तो कैसे
बरसों से रूह प्यासी है दीदार हो तो कैसे
तुमहीं हो दर्द मेरे तुमको ही दवा रखा है
तुमसे बिछड़कर.........

जानती हूँ कभी सच्चा नहीं था इश्क़ मेरा
जो भी एहसास हुआ बोलता रहा इश्क़ तेरा
दर्द सारा इक खामोशी में छिपा रखा है
तुमसे बिछड़कर.......

मेरे साहिब अब मुझे मेरा ही पता दे दो
हूँ खतावार चलो मुझको तुम सज़ा दे दो
हमने खुद को ही तेरा गुनाहगार बना रखा है
तुमसे बिछड़कर.......

अश्कों की स्याही से दर्द गम की गज़लें लिखना
दिल के कागज़ पर इश्क़ की कलम का चलना
खामोश करदो क्यों इज़हार बना रखा है

तुमसे बिछड़कर जीना भी कोई जीना है
बेवजह से साँसों का बोझ उठा रखा है
कितना दर्द कितनी आहें उठती हैं यहाँ
नाम तेरा ले लेकर सीने में दबा रखा है

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