तुम सों हरि
तुम सों हरि और न देख्यो , भक्तन की जूठन खाय रह्यौ
विपदा रही जब ब्रज पर भारी, गिरिराज कर स्यों उठाय रह्यौ
प्रेमवश रह्यौ भक्त अधीना, भक्तवक्तसल नाम धराय रह्यौ
अपनी स्तुति सों भी नाय रीझयो, भक्तन को यश ऐसो गाय रह्यौ
रीझ गयो सुदामा के प्रेम पर, सब निधि अपनों लुटाय रह्यौ
बनकर ग्वार ब्रज को ग्वाल , हरि नित गोधन चराय रह्यौ
दीनन सों अति नेह करो ये, चाकर सों भाग भगाय रह्यौ
भूल अपनों कोटि कोटि ऐश्वर्य, ब्रज बाल बन लीला रचाय रह्यौ
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