विषयन रस

विषयन रस अति प्यारो लागे मोहे हरिनाम को स्वाद न आवे
जगत की प्रीत में क्षण क्षण लौटूँ मुख पर कबहुँ हरिनाम न आवे
रैन दिवस विषय रस भावे मोहे विषयन माँहि हिय अटक्यो जावे
हरि मिल्न सों चाव न कोऊ या इच्छा नाँहि मेरो हिय धरावे
कूकर सम विषय रस प्यारो लागे कैसो हिय भजन रस आवे
बाँवरी तू होय कीट जगत को हरि भुलाय जीवन व्यर्थ गमावे

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