बलिहारी सद्गुरु

बलिहारी सद्गुरु अपने की जिन गोबिंद राह बताई
भव सिंधु मेरो डोलत नैया आपहुँ कीन्हीं सम्भराई
जगत विषयन सों आप बचायो मोहे हरि राह बताई
विषय कामना नष्ट कियो गोविन्द तृषा जगाई
काट दियो भव बन्धन मेरो मोहे प्रीत की नाव बैठाई
हरि हरि सुमिर सुमिर सुख पायो यही चाह्वे उतराई
बाँवरी पुनः पुनः जाये बलिहारी हुई धन्य सद्गुरु पाई
सीस पे हाथ मोहे प्रति क्षण राखियो होवै नाम कमाई

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून