हरि जी नहीं देखो

हरि जी नहीं देखो मेरी अधमाई
रसना नाम विहीना मेरी कबहुँ तेरो नाम न गाई
मों सो कौन कुटिल और लोभी आयो नाँहि शरणाई
भव निद्रा में रहूँ मग्न मैं तोसे प्रीत न लगाई
कौन सों मुख आय दिखाऊँ मैं पतिता अवगुण समाई
तुम दीनदयाल भव भजंन मोहे अपनावो यदुराई

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