विनती
भगत प्रेमी जो गल लगावो तो कौन बात, मोसे अधम कोऊ अपनावो तो जानिहै
रटत रहे कोऊ नाम तेरौ रैन दिन, मोसे पातकी कोऊ तारिहे तो मानिहै
एक तेरी और देख्यो हूँ मोहन मैं ,अधम मलिन और कछु कबहुँ देख्यो नाँहि
हाथ उठाय अब तोहे ही पुकारूँ नाथ ,हाथ पकर मेरो भव काटिहै तो मानिहै
मेरो ढिठाई अबहुँ देख्यो न मेरो नाथ , दीन हीन पामर को शरण माँहि जानिहै
द्वार तेरे आय खड्यो भिखारी की सुधि लीजौ, भिक्षा हरिनाम की पवाय हो तो मानिहै
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