तुम सों कौन प्रेम को दाता
तुम सों कौन प्रेम को दाता मोसों कौन पातकी नाथ
तुम बिन कौन भव बन्धन काटे शरण कीजौ मैं पतित अनाथ
कृपा कीजौ नाथ अधमन पर शरण पड़े को कीजौ सनाथ
तुम्हरे चरणन नित शीश नवाऊँ मस्तक पर रख दीन्हों हाथ
तुम्हरी कृपा ते बलि बलि जाऊँ अपनी और देखूँ सकुचात
जेहि विधि राख्यो तुम्हरी इच्छा बाँवरी तुम्हरे हाथ बिकात
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