पिय प्यारी के नयन

पिय प्यारी के नयन

श्री प्रिया कुछ गुनगुना रही हैं , प्रियतम उन्हें निहारने लगते हैं। प्रियतम जिस स्थान से खड़े श्री प्रिया को निहार रहे हैं उनके सन्मुख दर्पण लगा हुआ है जिसमें प्यारी जु उन्हें स्पष्ट दिखाई दे रहीं हैं। प्रियतम का ध्यान अब प्यारी जु के शब्दों पर न जाकर उनकी रूप माधुरी में उलझने लगता है। एक क्षण वह प्यारी जु को निहारते हैं और दूसरे ही क्षण दर्पण में प्यारी जु के प्रतिबिम्ब को। उनकी व्याकुलता धीरे धीरे बढ़ने लगती है । जैसे ही वह प्यारी जु को निहारते हैं , प्यारी जु अपने नेत्रों के कोर से उनकी और देखती है प्रियतम तुरन्त ही अपने नेत्र दर्पण की और लगा देते हैं। इससे प्यारी जु भी व्याकुल होने लगती है। जैसे ही प्रियतम प्रिया जु के निकट जाते हैं दर्पण में उन्हें प्रिया जु का प्रतिबिम्ब दिखना बन्द हो जाता है, परन्तु दोनों में रस अतृप्ति , रस व्याकुलता ऐसे बढ़ चुकी है कि अब दर्पण से नहीं , नेत्रों से ही नहीं जाने ये अतृप्ति कैसे तृप्त हो.....

पिय प्यारी के नेत्र एक दूसरे में उलझने लगते हैं और दोनों अद्भुत रसानन्द में डूबने लगते हैं।

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