अबहुँ सुधार करो

कीजौ छुटकारा मेरो भव बन्धन काटो हरि कौन सों मुख ते कहूँ
मलिन पतित अधम होऊँ जन्म सों कोऊ तुम बिनहुँ ठौर गहूँ
मो सम पातक नाय कोऊ जगत माँहिं पड्यो अबहुँ द्वार तेरे
पाप ताप सब काट्यो आपहुँ हरि करुणा बरसे चरण अपार तेरे
राख लेहो अपनी शरण अबहुँ मोहे नाँहिं अबहुँ बिसारो जी
झूठ ही कहूँ नाथ तुम सच मान लीजौ नाँहिं तुम सों कोऊ प्यारो जी
जानत हूँ तुम करुणा निधान होवो झूठ ही साँचो जानो जी
तेरी थी तेरी हूँ चाहे कहूँ झूठ मैं पर तुम ही अपनों मानो जी
झूठ कहूँ हरि झूठ जी जान्यो पतित जन्मन ते ही होऊँ मैं
तुम विमुख रहूँ नित नाथ मेरे व्यर्थ ही जीवन खोऊँ मैं
आपहुँ हाथ पकर लीजौ साहिब मो कुटिल को भव पार करो
जन्म जन्म की भूली भटकी नाथ जी कछु मेरा अबहुँ सुधार करो

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