अपनों सच
अपनों सच नित छुपाऊँ जगत सों भक्त को बेस बनाय रहूँ
जिव्हा चाण्डालिनी हरि नाम बिन मेरो विषय रस लगाय रहूँ
चिंतन भजन नाँहिं प्यारो लागे मोहे कुकर होऊँ विष्ठा खाय रहूँ
मानव देह मिली अमोलक हरि भजन को क्षण क्षण व्यर्थ गवाय रहूँ
बाँवरी जन्म व्यर्थ गमायो नाम बिन कोऊ पीर नाँहिं मनाय रहूँ
पतित अधम कैसो पुकारूँ तोहे नाथ अपने पापन सों शरमाय रहूँ
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