प्रेम करो तुम
प्रेम करो तुम सकल जगत सों ,मम हृदय होय प्रेम विहीन
होय रहूँ नित्य अभिमानी , कबहुँ ना मान्यो निज को दीन
कैसो तोय पुकार लगाऊँ , मेरो वाणी में बल न कोय
प्रेम से रीझो नन्दकुँवर तुम , मेरो हृदय माँहि प्रेम न होय
ढोंग धरूँ नित जगत में ऐसो , मो सो प्रेमी न होवै कोय
सगरी दसा कुँवर तुम जानो , बाँवरी रह्यो स्वांग ये ढोय
कौन सों मुख ते कहूँ नाथ मेरो , अबहुँ आय मेरी सुधि लीजो
लोभी पातकी विष्ठा को कूकर , कैसो नाथ तुम मोसे रीझो
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