संत सद्गुरु
संत सद्गुरु मानुस ना मानिहै हरि अपनो रूप बनाय
संतन मुख ते हरि आप कहें एहो रूप धार कर आय
भव भटकत मूढ़ जीवों पर अपनी कृपा कोर बरसाय
नाम रूपी नैय्या बनाय लीन्हीं पतितों को लियो बैठाय
नाम विहीन अधम जीवों ते सद्गुरु आपहुँ नाम जपाय
काट भव बन्धन जीव के सद्गुरु निर्मल कियो सुभाय
कल्मष क्लेश सब नाश कियो तब हरि रस दियो प्रकटाय
बाँवरी नित जावै बलिहारी सदगुरू चरणन सीस नवाय
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