साहिब मेरो मन
साहिब मेरो मन करे बड़ो ढिठाई
नाम जपे न रसना चण्डालिनी कैसो बनत बनाई
विषयन को रस भावै हिय को कैसो होय निभाई
नाम बिना मेरो नैया डूबे जी देत न बनत चुकाई
भिक्षा दीजौ अपने नाम की भूलूँ लोक लोकाई
कबहुँ रसना चाखै नाम रस कबहुँ ये धन पाई
नाम विहीना भिक्षा माँगू मेरी सुन लीजौ अरजाई
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