महाप्रभु जी का उन्माद
रात्रि का समय है श्रीवास आँगन में महाप्रभु और अन्य भक्त वृन्द कृष्ण कीर्तन कर रहे हैं।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
महामन्त्र की यह ध्वनि तीव्र अति तीव्र होती जा रही है। श्री गौरांग प्रभु में प्रेम के सात्विक विकार उतपन्न होने लगते हैं। गौरांग उठकर नृत्य करने लगते हैं। उनके गले में धारण की हुई पुष्प माला भी उनके स्पर्श से उन्मादिनी हो गयी है और महाप्रभु जी के संग झूलती जा रही है। महामन्त्र की ध्वनि तीव्र होती जाती है तो गौरांग का उन्माद भी बढ़ने लगता है। सहसा गौर भागने लगते हैं और रात्रि के समय ही किवाड़ खोल गंगा तट की और भाग जाते हैं। सभी आश्रयचकित होकर उनके पीछे भागने लगते हैं परंतु महाप्रभु जी इतनी तीव्र गति से दौड़ लगाते हैं कि शीघ्र ही सबकी दृष्टि से ओझल हो जाते हैं। नित्यानन्द तथा अन्य भक्त वृन्द उन्हें खोजते हुए गंगा तट पर आ जाते हैं तो देखते हैं महाप्रभु जी मूर्छित पड़े हैं। सभी रुदन करने लगते हैं श्री गौर को इस प्रेम मूर्छा से बाहर करने का भी एक ही उपाय है, उन्हें उनके प्यारे का नाम सुनाया जाये। सभी मिलकर पुनः महामन्त्र आरम्भ करते हैं
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
ज्यूँ ही महामन्त्र की ध्वनि तीव्रता पकड़ती है श्री गौर की देह में चेतना के चिन्ह प्रकट होने लगते हैं। धीरे धीरे गौरंग पूर्ण चेतन होते हैं तथा भक्त वृन्द के संग गंगा तट पर ही चन्द्र रात्रि में कृष्ण नाम रस पान करने लगते हैं। भक्त वृन्द आकाशीय चन्द्र की आभा में अपने हृदय चन्द्र श्री गौरचंद्र को निहार निहार सुख पाते हैं।
जय गौरांग
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