जन्मन मेल भरी

हरिहौं जन्मन मैल भरी
छांड भजन की बात बाँवरी जगति फिरै निकरी
जन्म जन्म गमाई मूढ़े कबहुँ हरि सौं  चित्त न लाई
धिक धिक तेरो जीवन बाँवरी स्वासा स्वास गमाई
हा हा नाथ पतित बाँवरी अबहुँ फिरै अकुलाई
भारी बहुत पापन की ढेरी देत न बनत चुकाई

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून