हा हा करत बौराई

हा हा करत बाँवरी बौराई
दीखे न चरण नवल श्यामा कौ ,निर्धन दासी अकुलाई
धन तो चरण तिहारे स्वामिनी, काहे दासी राखी निर्धन
कौन भाँति चरण रज पाऊँ तिहारी ,कंगाल बाँवरी कौ धन
हा हा करत रही अबहुँ स्वामिनी ,नेकहुँ निहारो निर्बल दासी
बाँवरी कोऊ बल न राखै, किस विध पाऊँ चरण ख़्वासी

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