कत्ल कर मेरा

कत्ल कर मेरा फिर हाल पूछते हैं
जानते हैं जवाब फिर सवाल पूछते हैं
हम तो मर चुके उनकी इसी अदा पर
क्या है इस बारे वो ख्याल पूछते हैं

बस इक नज़र निहार कर हमने क्या जी लिया
जाम इश्क़ वाला फिर भर भर हमने पी लिया
जानते हैं यह सब सुरूर है बस उनके इश्क़ का
वो कुछ यूँ ही हमको कर बेहाल पूछते हैं
कत्ल कर.....

रँग वो अपने इश्क़ के कुछ यूँ भरते हैं
इतना इश्क़ मुझसे मेरी सरकार करते हैं
कहने को भी तो लफ्ज़ नहीं हैं अब पास मेरे
बेरँग सी हुई रूह में वो गुलाल भरते हैं
कत्ल कर......

छूट रहा सब अब इश्क़ की पनाहों में
वही रहते ख्यालों में वही सब दुआओं में
कुछ यूँ कर लिए हैं अपने इख़्तियार में
बाक़ी सब मेरे ज़हन से निकाल पूछते हैं
कत्ल कर......

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