बाँवरी न भजन सुहावै

हरिहौं बाँवरी न भजन सुहावै
जगति भोग सौं रुचि गाढ़ी भाजी इत उत जावै
होवै प्रमाद नाम भजन कौ सदा करै अपनी मनमानी
हृदय भरा लोभ भोगन कौ भारी रहै भक्ता रूप दिखानी
धिक धिक बाँवरी ऐसो जीवन काहे बिरथा स्वासा कीन्हीं
भोगन कौ कीट बनी भोग सुहावै हरिनाम चित्त न दीन्हीं

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