राधा प्यारी
राधा प्यारी नवल सुकुमारी करत दृगन सौं बात
मदन रस विवश भ्यै मोहन सहत न प्रेम की घात
अधर सुरँग रँगे अनियारे झलमल करै नक बेसर
कुंदन मणि अलंकृत टीको नवल श्रृंगार रही धर
निलाम्बरी किशोरी भामिनी की नवल छबि रहै क्षण क्षण
बाँवरी नवल रँग रस तृषित देखे मनमोहन पिय मन
Comments
Post a Comment