झूठी सी हंसी

झूठी सी हँसी में गम छिपाने की कोशिश की है
फिर एक दफ़ा खुद से नज़र चुराने की कोशिश की है

कोई देख न ले हाल ए दिल क्या है हमारा भीतर
चेहरे पर एक ओर चेहरा लगाने की कोशिश की है

बोलकर कहना न था क्या दिल पर गुज़र जाती है
जाने क्यों इन गज़लों में बहाने की कोशिश की है

सच तो यह है कि नहीं सम्भलता यह दिल हमसे
लगता नहीं कहीं और हमने लगाने की कोशिश की है

तू ही बता दे छोड़ कर तुम्हें जाएं भी तो कहाँ

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