लौटे हैं
एक और तूफ़ान दिल मे दबा कर लौटे हैं
मरे हुए तो मुद्दत से थे लाश उठाकर लौटे हैं
खेली है होली हमने अपने ज़िगर के लहू से ही
बेरंग सी ज़िन्दगी को एक रँग रँगाकर लौटे हैं
जाने क्यों मुझमें उछल जाता है यह इश्क़ तेरा
कितनी बार इसको हम खामोश कराकर लौटे हैं
सच तो यह है कि बेबस हुए हम इस क़दर
तुम जो चाहते हो वह हो जाए यह समझाकर लौटे हैं
यूँ तो गायब होने की हम आरजू दिल मे रखते हैं
हाल ए दिल अश्कों में हम आज छिपाकर लौटे हैं
हाँ सच आसान नहीं है चलना राह इश्क़ वाली
गिरते पड़ते रहते अक़्सर हम खुद को उठा कर लौटे हैं
लिखते हैं जो हसरत तेरी तेरे ही लफ्ज़ों में बस
ख़ुद को तेरी यादों में फिर आज छिपाकर लौटे हैं
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