रात सारी

रात सारी अश्कों में गुज़ार दी हमने
सच तेरी जिंदगी में कब बहार दी हमने

पिये थे जाम कभी हमने तेरे इश्क़ वाले
रोते रोते सारी मय ही उतार दी हमने

सच तो यह है कोई इल्म नहीं इश्क़ का
दिल से उठती कहाँ कोई पुकार दी हमने

सच में हम तेरे दीदार के काबिल ही नहीं
खुद को तकते ही जिंदगी गुजार दी हमने

न होगा हमसे रोशन कोई चिराग कभी
खुद तो बिगड़े यह जिंदगी बिगार दी हमने

सच है सम्भलता ही नहीं दर्द ए इश्क़ हमसे
दर्दों की अब इक बस्ती पसार दी हमने

चन्द दिन के मेहमान भी न कर सके तुमको
मुद्दतों की आरजू दिल से ख़्वार दी हमने

जलता है कुछ भीतर भीतर सुलगता है अब
जलती हुई इस आग में फूँकार दी हमने

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