रहते हैं वो युगल भाव

रहते हैं दिल में वो छिपकर है यह मकान उनका
मेरा मुझमें न कुछ रहे है सब सामान उनका

न कोई इल्म है हमको की इश्क़ कर पाएं
फिर भी जाता नहीं दिल से अब निशाँ उनका
रहते हैं........

चाँद और चाँदनी उतरे जाने कब आँगन मेरे
यह सितारा भी उनका है आसमां उनका
रहते हैं........

वो फूल और खुशबू बनकर महकें कब बगिया मेरी
उनकी महक से कब महके यह आशियाँ उनका
रहते हैं.......

छिपते हैं मुझसे ही मुझमे होकर ही महबूब मेरे
है खामोश चाहे हो चुका दिल राजदान उनका
रहते हैं.......

चलो खेलो आज मुझसे जैसे चाहत हो उनकी
यह बेखुदी भी है उनकी यह दिल ए नादां उनका
रहते हैं.......

मेरा मुझमें भी क्या है बाक़ी सोचती हूँ अक्सर
हर अश्क़ भी उन्हीं का हर तूफान उनका
रहते हैं........

    हमारे प्रियाप्रियतम हमारे ही तो हृदय निकुंज में छिपे भये हैं। हमारे ही अहंकार की दीवारें बहुत ऊंची हैं।बस हम अपनी ही हस्ती को मिटा नहीं पाए। पर उनका निवास तो हृदय निकुंज में सदा से है और रहेगा यही भूल गए।वह तो चाँद और चांदनी बनकर खिलने को आतुर , पर हम आप ही सितारा बनकर इस हृदय को आसमान अर्थात उनका क्रीड़ा भवन उनका आनन्द सदन न बना सके।दोनों फूल और सुगन्ध की भांति एक दूसरे बिन अधूरे हैं, पर फूल भी तब खिले जब हृदय प्रेम बगिया बने।वह तो कबसे छिपे ही हुए हैं, यह जानकर भी हम अनजान बन  रहे।अपनी नादानियों में हम उनका प्रेम ही कहाँ निहार पाते हैं जबकि चारों ओर केवल केवल उनके प्रेम का ही विलास है।उनसे मिलने के लिए यदि हृदय की तड़प या नेत्रों में कोई अश्रु कण है तो भी यह हमारे श्रीयुगल की ही करुणा है, उन्हीं का प्रेम है। सदा से है सदा रहेगा......

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