पुकार क्रन्दन
पुकार
हाँ बस पुकार
जान गया यह हृदय
सच्चा प्रेम
केवल पुकारता है
क्या माँग है प्रेम की
मिलना तुमसे
या तुमको ही बुलाना
नहीं नहीं
इतनी मलिनता सँग
तुमको कहाँ मिलूँ
रुको रुको
तुम भी मत आओ
अब कहाँ पुकारा मैंने
कहाँ सच्ची पुकार उठी
कहाँ रोम रोम दग्ध हुआ
कहाँ प्राण अटके अभी
कहाँ हृदय विदीर्ण हुआ मेरा
सुनो
मत आओ
केवल इतना करो
मुझमें भर दो
एक पुकार
एक सच्ची पुकार
जिसमें हृदय की टीस हो
क्रन्दन हो
पिघलता हुआ हृदय
बस इतना
बस यही
क्रन्दन ही बने जीवन प्रियतम
क्रन्दन ही बने जीवन प्रियतम
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