अवगुण की खान

हरिहौं होऊँ अवगुण कौ खान
जेई विध करौ चरणन राखो हरिहौं अपनो जान
गुण सकल तिहारो नाथा बाँवरी होय अवगुण ढेरी
जन्म जन्म गमाई मूढ़ा अबहुँ छूटै नाँहिं मेरी मेरी
जेई विध तुम चाहो हरिहौं अपनो जनन सुधार करो
बाँवरी ठौर गौर चरणन माँहिं जिस विध चाहो पार करो

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