दर्द और दवा
दर्द हो मेरा तो मेरी दवा भी तुम हो
बेवफ़ाई तो भरी मुझमें पर वफ़ा तुम हो
मुद्दतों से न पढ़ सके जिसको हम अब तलक
एक छिपा हुआ इश्क़ का फ़लसफ़ा तुम हो
न गुनगुना सके जिसको कभी लबों से भी हम
आंखों से बहता हुआ इश्क़ का नग़मा तुम हो
न कभी देखा था हमने भी झलक भर तुमको
खुद को देखते हैं जिसमें वही आईना तुम हो
मेरे अश्कों मेरी गज़लों मेरे लफ़्ज़ों में उतरा कोई
धड़कनों में जो सुन रहा दिल ए आशना तुम हो
कैसे खोजूँ तुम्हें बाहर यह रूह तलक भी तो मेरी नहीं
दो पल कभी तुम जिये इसको कभी गुमशुदा तुम हो
बस तुम ही तुम रह जाते क्यों मुझमें लौटी मैं फिर मैं होकर
जिंदा रहता है जो मेरी रूह में वही निशाँ तुम हो
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