बाँवरी भई कंगाला

हरिहौं बाँवरी भई कंगाला
जन्म जन्म सौं नाम न लीन्हीं फिरै जगत जंजाला
खावन पीवन की सुधि राखै निशदिन देहा फिरै सजाई
भई चमारी बाँवरी हरिहौं कबहुँ हरिनाम लौ न लाई
कबहुँ भोग विषय रस छूटै नाथा आपहुँ करौ सम्भारा
बाँवरी की सुधि लीजौ नाथा दियो जन्मन जन्म बिगारा

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