न आज हमको पुकारो

न आज हमको पुकारो की मैं नशे में हूँ
न बिखरी हुई जुल्फ सँवारो की मैं नशे में हूँ
न आज .....

पीकर भी प्यासे रहे हम जाम तेरे इश्क़ वाले
यूँ अब चढ़ी न उतारो की मैं नशे में हूँ
न आज.......

देखा नहीं वो चाँद अब तलक अपने आँगन में
खामोश हो जाओ सितारो की मैं नशे में हूँ
न आज..... 

जाने कौन मुझमें ही भरकर उछलता रहता है
अब न हालत मेरी सुधारो की मैं नशे में हूँ
न आज .......

जाने क्यों लिखी यह कलम बेवफ़ाई मेरी ही
मुझपर कोई रङ्ग न डारो की मैं नशे में हूँ
न आज मुझको.......

खामोश रहना भी साहिब न मुमकिन हो पाया
मुझ को मुझमें ही निहारो की मैं नशे में हूँ
न आज मुझको.....

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