भोगन ते छुटकारा

हरिहौ कबहुँ होय भोगन छुटकारा
कबहुँ हिय प्रेम रस उमगै छूटे भोग पसारा
बाँवरी जन्म गयौ खोटो कीन्हीं नाय बिचारा
नाम भजन की नाव बिनहुँ होय न भव सों पारा
भोग विष्ठा कूकरी सम पावै हिय भरयौ अँधियारा
कौन विध जंजाला एहि छूटे हिय रसे प्रेमसुधा धारा

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