जीवन व्यर्थ गमायो

बाँवरी जीवन व्यर्थ गमायो
स्वास स्वास को मोल न कीन्हों हरिनाम न गायो
षडरस पीवै नित बने कूकरी झूठो काहे सांग बनायो
जिव्हा सों हरिनाम न उच्चरै माला कंठी तिलक धरायो
बाँवरी ढोंगी जन्मन ते होवै ढोंग धरे कौन हरि पायो
कौन विध तेरौ हिय फुलेगो साध सँगत न कबहुँ सुहायो

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