मीठा सा कत्ल
तुमसे इश्क़ होना भी इक मीठा से कत्ल हो गया
तुम रहते तो सुकून है मेरे होने की वजह क्या है
तुम थे तो जिंदगी थी सुकून था साँसे थी
मेरे होने का बोझ ही न उठाती साँसे मेरी
बस परेशान हु मैं खुद में खुद के होने से
तुम और ठहर जाते तो कुछ जिंदगी होती
कैसा दर्द है इश्क़ का मीठा सा
हाय न चखते बने न छोड़ते बने
कभी भीगती रही तेरे इश्क़ की बरसातों में
अब तो सुलगते से रहते हैं सब रातों मे
वो हवाओं की सिहरन वो कूकती सी तरंगें
जो कभी इस दर्द से सुकून देती थी हमें
वही सब तो आज भी वैसा ही है
पर हम ही क्यों दिलजले से हो गए
हर जगह तुझको परछाइयों में खोजा
जानते नहीं थे यह मर्ज़ लाइलाज है
कभी दर्द में मौत की फरियाद करते हैं
फिर भी जिंदगी भर तुझको याद करते हैं
सच तो यह है दर्दों से भी इश्क़ हो चला
अपने इश्क़ का यह मीठा दर्द जो लगाया तुमने
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