कैसो पावे कोऊ गोविंद

कैसो पावै कोऊ गोविंद मन विषयन रस पागे
भोग जगत के हिय बसावै नाम सुमिरन ते भागे
कबहुँ हिय हरि रस आवै हाय भोगी जीव अभागे
नाम रस की वर्षा होवै हिय प्रेम सुधा उमागे
चोरी करो पूरी मनहर तभी हिय प्रेम में लागे
मो निर्बल को भव सिंधु बचावो तबहुँ भव विष्ठा त्यागे

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