दीनन को झूठो स्वांग
दीनन को झूठो स्वांग रचायो हिय रह्यौ मदमत्सर
कर्कश वाणी होय सम कागा न मधुर कोकिल स्वर
जगत की विष्ठा ऐसो भावै न राखे हरिनाम अधर
कौन सों मुख ते कहिहौ आय मिलो मोहे मनहर
जो होतो प्रेम तेरौ साँचो बहते दृगन सों अश्रु भर
झूठो स्वांग रच्यौ बाँवरी कौन विधि आवै नटवर
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