कितना यह दिल जला है
कितना यह दिल जला है सब दिल की लगी से पूछो
पूछो आंखों की बरसातों से रातों को जगी से पूछो
ले लेकर नाम तेरा उठती हैं कितनी आहें यहां
दिल की लगी क्या होती इस दिल्लगी से पूछो
कटती है सुलगती सी पल पल बिखर बिखर कर
तेरे नाम से सिसकती हुई इस जिन्दगी से पूछो
हर ओर देखती है जो बस तेरा ही तेरा नजारा
आकर तुझ पर सिमटती इस आवारगी से पूछो
मुझको हुई खुमारी तेरे इश्क़ की ऐसी साहिब
क्या कहूँ हाल ए दिल मेरा मेरी बेखुदी से पूछो
मुझमें क्यों खेलता है साहिब तेरा इश्क़ ऐसे
तेरे नाम से चलती सांसों की रवानगी से पूछो
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