आज की शाम
आज की शाम फिर उदास बना गई है मुझे
तुझसे दूर होने का एहसास दिला गई है मुझे
आज की शाम.....
बैठी रही अंधेरों में चिराग तक न जलाए मैंने
यह दिल की लगी ही अब जला गई है मुझे
आज की शाम.....
तेरी यादों में खोई सी अश्क़ बहाती रही
वफ़ा तेरी अश्कों का दरिया बना गई है मुझे
आज की शाम.....
दर्द पीने के अब शौक लगे हैं रूह को ऐसे
जबसे मोहबत जुदाई का दर्द पिला गई है मुझे
आज की शाम.....
हम खरीदार हुए चंद जख्मों के गहनों के
तेरी आशिक़ी इन दर्दों से सजा गई है मुझे
आज की शाम.....
पीकर तेरे मयख़ाने से अब होश नहीं कोई बाक़ी
साकिया मय तेरी मोहबत का जो पिला गई है मुझे
आज की शाम.....
न तो गिनती है जिंदा हैं या मुर्दा हुए हम
दिल क्या गंवाया यूँ बेख़ुद सा बना गई है मुझे
आज की शाम फिर उदास बना गई है मुझे
तुझसे दूर होने का एहसास दिला गई है मुझे
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