भांति भांति के ढोंग

भाँति भाँति के ढोंग रचावे भाँति भाँति के भोग करे
बाँवरी तू जन्मन की खोटी कबहुँ न युगल चरण परे
न कोऊ प्रेम होवै तेरौ हिय कठोर होय पाषाण समान
भोग वासना कूकरी विष्ठा भरयो मदमत्सर अभिमान
कोऊ ऐसो अवगुण न जो बाँवरी हिय धरायो न
जन्म व्यर्थ बाँवरी कीन्हा श्यामाश्याम गुण गायो न

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