तेरी पुकार
*तेरी पुकार*
प्रियतम श्यामसुंदर ने फिर से अपना वेणु नाद छेड़ दिया है।आज यह नाद एक एक रव के साथ प्रियतम हृदय की लालसा तो भर ही रह है , परन्तु आज एक एक रव प्राणों को पोषित कर रहा जैसे। आज रस की लालसा को तो यह रव तरंगायित कर ही रहा है परन्तु आज .........
आज तो प्रियतम...........
प्रत्येक रव में अपनी व्याकुलता , अपने प्राण , अपना सर्वस्व फूंक कर एक ही नाम ले रहे प्यारी प्याआआरी प्याआआआआरी ...........
प्रत्येक वेणु रव आज प्रियतम के हृदय की आह्लादिनी , उनकी प्राणा को ही पुकार रहा है प्यारी पाया........री प्या.............री......
न तो प्रियतम हृदय की यह लालसा थम रही है , न ही प्यारी के हृदय में वह रस सागर की उत्ताल तरंगें शांत हो रही हैं। जैसे ही प्यारी इस वेणु रव से प्रियतम के हृदय की व्याकुलता को अपने हृदय में अनुभूत कर रही है, प्यारी जु के हृदय में प्रियतम का ही तो वास है। प्यारी मौन भी न हो रही वरन हृदय में वही रस सागर लहरा रहा और प्यारी वेणु रव के साथ स्वयम आह्लादित हो स्वयम ही पुकार रही प्यारी पाया........री प्या...........री.......
प्यारी के हृदय में प्रियतम ही तो हैं , प्यारी इस वेणु की रव में ऐसे डूब चली है कि भान ही न हो रहा कि वह प्रियतम है या प्यारी । वेणु रव से आह्लादित हो पुकार रही है प्यारी प्या.......री प्या...........री........
प्रेम में ऐसे आत्मविस्मृति की प्रियतम की पुकार ही प्यारी की पुकार हो चुकी ।
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