बेखुदी या होश

यह न होश है न ही बेखुदी
तेरे इश्क़ की है दीवानगी
पीकर तेरे मयखाने से थोड़ी
मुझे मिल गयी थोड़ी जिंदगी

जहां तुम न होकर भी मिले
मैं होकर भी कुछ गुम सी थी
बस नशा था तेरी सांसों का
कुछ आँख मेरी नम सी थी

लौटा दो चंद वही घड़ियाँ मुझे
वही तो कुछ पल की जिंदगी
मेरे लहू में जहां शामिल थी
तेरे इश्क़ की ही रवानगी

जहां सुकून था तुमसे मिलने का
मेरी सांसों की आहट सी थी
मखमली एहसास वो इश्क़ का
दिल मे कुछ छटपटाहट सी थी

जो आंख खुली तो तुम न थे
हम फिर से उसी रुसवाई में
है इश्क़ तुम्हारा अजब साहिब
मिलते भी हो यूँ तन्हाई में

कभी लगे खुद में हम खुद न थे
कभी लगे तुम में तुम न थे
बस इश्क़ ही इश्क़ बह रहा था
कहानी इश्क़ की कह रहा था

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