नयनों में अश्क़ भरकर
नयनों में अश्क़ भरके कैसे तुम्हें निहारें
दिल सुलगता है तुम बिन कैसे तुम्हें पुकारें
मोती नहीं हैं पानी बहता है खारा खारा
रुकती नहीं हैं आँखों से अश्कों की अब कतारें
नयनों में ...
जाने क्यों देखते हैं आती जाती साँसें अपनी
जीने की तुम वज़ह दो कैसे जिंदगी गुज़ारें
नयनों में ....
नज़रों में ही रह जाओ नहीं दूर जाओ पल भर को
नज़रों में ही छिपाकर तेरी नज़र हम उतारें
नयनों में .....
हमको तो इल्म नहीं है तुमसे इश्क़ कर पाएं
हम तो बस देखते हैं तेरे ही सब इशारे
नयनों में......
जाने मुझमें क्या उछल रहा मुझको भी ख़बर नहीं
मेरे दिल अब बोलता है दिल के लफ्ज़ तुम्हारे
नयनों में ....
मुद्दत से यूँ ही बैठे हैं हम इंतज़ार में तेरे
नदियाँ बन बह रहे हैं मेरे नयनों के किनारे
नयनों में अश्क़ भरके कैसे तुम्हें निहारें
दिल सुलगता है तुम बिन कैसे तुम्हें पुकारें
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