भोग वासना
हरिहौं भोग वासना गहरी
बाँवरी काम विषय की गठरी नाथा सिर पर रहै ठहरी
भोग वासना दिन प्रतिदिन बाढ़ै मेरौ गठरी होवत भारी
दुर्बल मतिहीना बाँवरी कहो किस भाँति करै सम्भारी
आपहुँ पकरि कै चपत लगावो तुम्हरौ जन क्योंहोऊँ दुर्बल
माया पिशाची सौं छुड़वाओ देयो नाथा आपनो निज बल
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