मन माया कौ दास
हरिहौं कबहुँ मन पकरै तव नाम
बिरथा दिखावै भोग जगति कै, कबहुँ होय भोगन सौं उपराम
नाम ही डोर पकरै कबहुँ, कबहुँ होय स्वास स्वास हरिनाम
मानुस जन्म करै बिरथा बाँवरी ,प्यारे लागै भोगन चाम
हा हा बाँवरी भई चमारी , मुख सौं निकसै नाँहिं तेरो नाम
आपहुँ जगति के फन्द मोरे काटो, नाथा मेरो निताई राम
Comments
Post a Comment