सिसकने का मज़ा
बन्द हुई साँसे तो सिसकने का मज़ा कैसे मिले
मेरे महबूब मुझे पल पल का सुलगना दे दो
अश्कों की बारिशों में आज नहाना है हमको
अब हमें पल पल अश्कों से भीगना दे दो
हाँ बहुत मज़बूत हैं भीतर जो है भरा मेरे
चोट करो हमको पल पल का टूटना दे दो
मुद्दतों से खड़े हैं हम इश्क़ के समन्दर पर
अब न लौटें कभी अब हमको डूबना दे दो
क्यों तुमसे दूर रहकर जीना गंवारा है हमको
पल पल बस तेरी याद में मरना दे दो
क्यों ख्वाहिशें बाक़ी हैं मेरी इक तेरी ख़्वाहिश बिन
मुझको मेरे असली वजूद में अब लौटना दे दो
बन्द हुई साँसे तो सिसकने का मज़ा कैसे मिले
मेरे महबूब मुझे पल पल का सुलगना दे दो
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