जानू तोरी झूठी बतियाँ

जानू तोरी झूठी बतियाँ
मान कियो न राधा तोसे बैठी बहावे अखियाँ
व्याकुल हिय रह्यौ भारी पूछे सारी सखियाँ
झूठी बात बनावै मोहन न अब भेजूँ पतियाँ
कबहुँ मान करूँ पिया तोसे रोवत सारी रतियाँ
हिय तड़पावे और मुस्कावे सूखे मेरो छतियाँ

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