प्रेम प्रलाप

प्रेम प्रलाप हिय संताप याहि प्रेम को धन
मन अंतर की पीड़ा चाखै प्राणधन करे रमण
पीड़ा प्रेम की अति मीठी पुनि पुनि हिय सरसावै
भस्म करे सब उर अंतर सों हिय प्राणधन लावै
प्राणधन मोहे क्षण क्षण दीजौ प्रेम को याहि उपहार
बाँवरी चाह्वे पीर प्रेम की याहि प्रेम को सार

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