विरह पीर री
जब ते गयौ श्याम सखी अंग अंग व्याकुल भयो एकहुँ क्षण ते विराम होय नाय री
प्रेम नेम नाय जानूँ बतियाँ वाकी याद मोहे पीर भारी हिय ते क्षण नाय जाय री
खान पीन सुधि नाय विरहणी बाँवरी होय पिय पिय को रटे बैठी एको राग गाय री
नैनन न सूखे अश्रु बेलि धावत इत उत अकेली भई बाँवरी ऐसो जीवन बिताय री
पुनि पुनि कहे बाँवरी एहि प्रेम को रोग बुरो कोऊ जान देवे तबहुँ प्रेम हिय पाय री
जोय लागे प्यारो लोक परलोक की बनत देखे कैसो मो अधम सम प्रेम रस पाय री
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