मधुराधिपति अखिलं मधुरम

*मधुरातिमधुर अखिलं मधुरम*

मधुरातिमधुर कौन , जिनका सम्पूर्णत्व ही मधुरता है। माधुर्यसार अखिलेश्वर रसराज रसिक शेखर , जिनकी मधुरता है , श्रीराधा श्रीराधा श्रीराधा । आह यह नाम ही अति मधुर। इतना मधुर की मनहर इस माधुरी को सम्पूर्ण सहेज ही न पाते , वरन स्वयम ही इस मधुरसार सिंधु के एक कण में अपना सम्पूर्णत्व न्योछावर करने को व्याकुल।

      जहां श्रीनारायण अपना सम्पूर्ण ऐश्वर्य त्याग माधुर्य में श्रीनित्यनिकुंज बिहारी हुए हैं , रसराज रसिक शेखर का सम्पूर्ण आह्लाद , सम्पूर्ण माधुर्यसार समेटे हुए उनकी ही शक्ति श्रीनित्यनिकुंजेश्वरी नवल नागरी नित्य नवल रूपिणी श्रीकिशोरी जु। जिनकी मधुरता , जिनका रूप लावण्य, जिनकी रस सुधा पयोधि का पान करने को तृषातुर यह नवल नागर। मधुरातिमधुर , मधुराधिपति अखिलं मधुरम।

ऐसे श्रीकृष्ण जिनका नाम मधुर है, जिनकी वाणी मधुर है, जिनका हंसना मधुर है, जिनका चलना मधुर है, जिनका देखना मधुर है, जिनका नाचना मधुर है, जिनका स्पर्श मधुर है, जिनका उन्माद मधुर है, जिनका आह्लाद मधुर है, जिनके अंग मधुर हैं, जिनका रँग मधुर है, जिनकी मुस्कन मधुर है, जिनकी चितवन मधुर है, आह !!मधुरता के कोटि कोटि सागर समेटे हुए श्रीब्रजेंद्रनन्दन इतने मधुर हैं क्योंकि वह यह सम्पूर्ण मधुरता का पान कर रहे , माधुर्य वर्षिणी श्रीराधा जु से। आहा !! तो इन मधुरम को भी मधुता प्रदान करने वाली है श्रीराधा। जिनकी माधुरी के स्पर्श यह यह और मधुर हो रहें हैं , और तृषातुर हो रहे हैं । यह मधुरता की तृषा क्षण क्षण नवनवायमान हो रही है। इनकी मधुरता ही श्रीमाधुरेश्वरी श्रीराधा हैं जिनसे आह्लादित हो यह कोटि कोटि ब्रह्मांडों में अपनी मधुरता को बिखेर रहे हैं और उसकी मधुरता के क्षण प्रतिक्षण आस्वादन में क्षण प्रतिक्षण तृषातुर  , कौन , *मधुराधिपति अखिलं मधुरम*

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