निर्मोही प्राण
हाय रे निर्मोही भये प्राण
पिय सों बिछुरे गयो न देह सों काहे रखाये प्राण
नेह न लाग्यो साँचो तुमसों नहीं तो रहत न प्राण
जो होतो कण भी नेह साँचो शेष न रहते मोरे प्राण
अग्न न दग्ध करे विरह की शेष रहे क्यों प्राण
प्राणधन प्राणनाथ तुम बिन बिन काहे राखूँ प्राण
Comments
Post a Comment